Chaand ki kahaani

*चांद भी क्या खूब है,*
*न सर पर घूंघट है,*
*न चेहरे पे बुरका,*

*कभी करवाचौथ का हो गया,*
*तो कभी ईद का,*
*तो कभी ग्रहण का*

*अगर*

*ज़मीन पर होता तो*
*टूटकर विवादों मे होता,*
*अदालत की सुनवाइयों में होता,*
*अखबार की सुर्ख़ियों में होता,*

*लेकीन*

*शुक्र है आसमान में बादलों की गोद में है,*
*इसीलिए ज़मीन में कविताओं और ग़ज़लों में महफूज़ है"*
🙏🏼

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